लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - साक्षात्कार

राम कथा - साक्षात्कार

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :173
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 533
आईएसबीएन :81-216-0765-5

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

37 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, चौथा सोपान

पांच

 

''तुम इस समय कैसे, मणि?" राम चकित थे, ''बच्चों को किसके पास छोड़कर आयी हो, उल्लास के पास?''

''नहीं।'' मणि बोली, ''उल्लास को तो मुखर भैया ने कहीं काम पर भेजा है। बच्चे तो प्रातः से ही आश्रम की बाल-बाड़ी में हैं।'' 

''तो?"

"मैं एक सूचना लायी हूं, भद्र राम!'' मणि धीरे से बोली, ''यद्यपि मेरे बच्चों के स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए मुझे कोई भी कार्य नहीं सौंपा गया, किंतु यह कार्य मैंने अपनी इच्छा से किया है। शूर्पणखा के प्रासाद में मेरी अनेक सखियां हैं, हमने एक लंबा दुख भरा काल एक- साथ बिताया है, अतः उन्हें मुझसे स्नेह है, और मैं उन पर विश्वास कर सकती हूं।''

''कहो, मणि!'' राम दत्तचित्त थे, ''मैं सुन रहा हूं।''

''शूर्पणखा के प्रासाद की दासियों की सूचना है आर्य, कि यद्यपि खर चौदह सहस्र सैनिकों को लेकर युद्ध के लिए आ रहा है, किंतु शूर्पणखा की युद्ध में विशेष रुचि नहीं है।''

''क्यों?'' राम चौंके।

''उसकी सर्वाधिक रुचि दीदी के अपहरण में है।''

''सीता के अपहरण में?"

''हां, आर्य! उसने खर को सारा अभियान इस प्रकार सम्पन्न करने के लिए कहा है'' मणि बोली, ''कि उसका अपमान करने के दंडस्वरूप सौमित्र का वध हो, रावण को उपहार में देने के लिए दीदी का अपहरण हो तथा युद्ध की उपलब्धि के रूप में शूर्पणखा को राम मिले-बंदी अथवा दास के रूप में। इसके लिए चाहे चौदह सहज सैनिकों में से एक-एक को मरना पड़े। और यदि दीदी का अपहरण संमव हुआ, तो वे युद्ध के स्थान पर अपहरण को ही वरीयता देंगे...।''

राम चिंतन-मग्न दृष्टि से मणि को देखते रहे, और सहसा मुस्करा पड़े, ''मुखर ने सघन जाल फैला रखा है अपने गढ़ पुरुषों का; किंतु ऐसा समाचार तो कोई नहीं लाया, मणि! तुम तो वस्तुतः मणि हो, मानव-मणि। तुम्हारी उपयोगिता सबने ही कम आंकी है। तुमने कितना बड़ा काम किया है, बहन! कदाचित स्वयं तुम भी नहीं जानतीं...''

''मैं यदि आपके किसी भी काम आ सकूं?...'' मणि की आंखों में पानी झलकने लगा, ''आपने मुझे, मेरे पति और बच्चों को कितनी यातनाओं और अंतत: मृत्यु से बचाया है।''

''मणि!'' राम के होंठों पर स्निग्ध मुस्कान थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book